ुवा कवि जालाराम की कविताए वो रातें..... वो रातें अब कहाँ गई, जब पल भर में सो जाते थे वो सपने अब कहाँ गए, जब पल भर में रो जाते थे यादों का मंदिर खड़ा करूँ, वो पल भर में ढ़ह जाता है बचपन के आगे तो सारा, जीवन ही बह जाता है छोड़ करके सारी गिलिडंडिया, क्रिकेट में रह जाते है वो पुराने खेल छोड़ कर, कैसे उसमें बह जाते है छोड़कर अपनी भारत भू को, अंग्रेजी दुनिया में जाते है भले ही हाय-बाॅय कहते हैं, पर माँ का प्यार कैसे पाते हैं कोयल की कूँ-कूँ को सुनने, घर से बाहर आते थे अब उनकी ध्वनि को सुनने, कर्ण बड़े पछताते है त्याग, स्वाभिमान छोड़ करके, दहशतगर्दी के शूल बो जाते हैं नन्हें अमर के आँसू और घास की रोटी, कैसे भूल जाते हैं देख नादान मूर्खों को मेरी, कलम बड़ी कतराती हैं धर्म नाम के अनोखे ढोंग को देख, माँ भारती आँसू छलकाती हैं सियासत की गंदी नजरों से, एक नहीं सौ-सौ बार छल जाते हैं गरीबी का प्रतिबिंब अनोखा, गंदे चीथड़ों में पल जाते हैं माँ की थपकियां मिलती है, जो आशीर्वाद में ढ़ल जाते है वो दुआएं अब नहीं मिलती है, फिर कैसे सो जाते हैं।
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