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  ुवा कवि जालाराम की कविताए वो रातें..... वो रातें अब कहाँ गई, जब पल भर में सो जाते थे वो सपने अब कहाँ गए, जब पल भर में रो जाते थे यादों का मंदिर खड़ा करूँ, वो पल भर में ढ़ह जाता है बचपन के आगे तो सारा, जीवन ही बह जाता है छोड़ करके सारी गिलिडंडिया, क्रिकेट में रह जाते है वो पुराने खेल छोड़ कर, कैसे उसमें बह जाते है छोड़कर अपनी भारत भू को, अंग्रेजी दुनिया में जाते है भले ही हाय-बाॅय कहते हैं, पर माँ का प्यार कैसे पाते हैं कोयल की कूँ-कूँ को सुनने, घर से बाहर आते थे अब उनकी ध्वनि को सुनने, कर्ण बड़े पछताते है त्याग, स्वाभिमान छोड़ करके, दहशतगर्दी के शूल बो जाते हैं नन्हें अमर के आँसू और घास की रोटी, कैसे भूल जाते हैं देख नादान मूर्खों को मेरी, कलम बड़ी कतराती हैं धर्म नाम के अनोखे ढोंग को देख, माँ भारती आँसू छलकाती हैं सियासत की गंदी नजरों से, एक नहीं सौ-सौ बार छल जाते हैं गरीबी का प्रतिबिंब अनोखा, गंदे चीथड़ों में पल जाते हैं माँ की थपकियां मिलती है, जो आशीर्वाद में ढ़ल जाते है वो दुआएं अब नहीं मिलती है, फिर कैसे सो जाते हैं।

सम्पादकीय भाजपा के लिए है अवसर,बदले बिहार की तकदीर और करे जनता के दिलों पर राज...

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 सम्पादकीय          विनोद आनंद क्या इस बार भाजपा का बड़बोलापन,और जुमलेबाजी महंगा पड़ने बाला है... या अपने बेहतरीन प्रदर्शन से राज्य की जनता के दिलों पर राज्य करने का मौका..? यह सबाल बिहार के राजनीतिक गलियारों में उठने लगा है। चुनाव के समय राजद ने बेरोजगारी का मुद्दा उठाकर जनता से वादा  किया था कि कैबिनेट की प्रथम बैठक में ही बिहार के 10 लाख युवाओं को रोजगार देने के लिए पहल शुरू कर देंगे। राजद के इस वादा पर जदयू ने सबाल उठाते हुए कहा था कि तनखाह देने के लिए पैसे कहाँ से लाओगे ? नीतीश जी ने तो यहां तक कह दिया था कि क्या जेल से पैसा आएगा। इस सबाल के जवाब में तेजस्वी  ने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा था कि विधायक मंत्री का पैसा रोक देंगे लेकिन युवाओं को रोजगार देंगे। परंतु जदयू ने इस तरह के किसी वादे से बचते रहे । लेकिन भाजपा ने राजद से दो कदम आगे बढ़कर  वादा किया कि हम बिहार में 19 लाख लोगों को रोजगार देंगे।            इसका असर भी हुआ।इस वादा के बाद बिहार में भाजपा के  वोटों का  ग्राफ  बढ़ा,भाजपा एनडीए में जदयू को पछाड़ते हुए सबसे बड़ी पार्टी बनी।नीतीश जी भाजपा के कृपा से मुख्यमंत्री  बने। अब नीत
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संपादक की कलम से ------------------------------- यह जहर देश को कहां ले जाएगा    ?                                                                                                                                                                                                                               ---  बिनोद आनंद एक खबर आई पश्चिम बंगाल से ।नादिया जिला में एक 24 वर्षीय शख्स कृश्णा देवनाथ ने जय श्री राम का नारा लगाया तो भीड़ ने  उसे पीट पीट कर मार डाला ।उसकी हत्या के लिए तृणमूल कांग्रेस के समर्थको का हाथ बताया गया ।         दूसरी घटना झारखंड की है जो कुछ दिन पहले झारखंड में हुई थी । मो तबरेज को भीड़ ने जय श्री राम नही बोलने पर 18 घंटो तक पोल में बांध कर पिटता रहा और अंततः जेल जाने के बाद उसकी मौत हो गयी ।         यह दोनों घटना तो बहुत छोटी सी लगती है,हम  सोचते हैं कि चलो भीड़ ने ऐसा कर दिया । दोषी को सजा मिल जाएगी ,कानून अपनी प्रक्रिया के तहत काम करके इन समस्याओं का समाधान कर लेगा। लेकिन ,सबाल उठता है कि किया इसका हल यहां से हो जाएगा ? आज इन जहर का बीजारोपण कहाँ
नसीमा बाजी अपने दफ्तर में बाहर से आकर बैठा ही था तभी हड़बड़ाये हुए अख्‍तर आया । उसकी आँखे सुजी हुई थी और होशो-हवाश गुम थे । वह आते ही बोला- ‘भाई साहब' नसीमा बाजी नहीं रही । हम लोगो को छोड़कर चली गई। इंतकाल के पहले न जाने वह क्‍यों आप से मिलना चाहती थी । बार बार आपका जिक्र कर रही थी । शायद आपसे कुछ कहना चाहती थी । ‘क्‍या .... ? गहरा आघात लगा था मुझे । मैं इस शब्‍द के आगे कुछ कह भी न पाया था । गला भर आया मेरा और अनायास आंखों के कोर भींग गए । मेरी आंखों के सामने नसीमा का भोला - भाला चेहरा घूमने लगा । उसकी खिलखिलाहट, उसका चिहुंकना और कभी- कभी गम्‍भीर हो जाना, मौका बे मौका हर समस्‍याओं पर बेवाक सलाह लेना । नसीमा मुझे अपना धर्म भाई बना ली थी । और भाई से ज्‍यादा मैं उस पर अभिभावक का हक रखता था । छोटी-छोटी गलतियों पर डपट भी दिया करता था । वह कभी कभी सहम भी जाती थी और फिर मुझे खुश करने के लिए बच्‍ची की तरह हरकत करने लगती थी । मेरा सारा गुस्‍सा काफूर हो जाता था । वह लगती भी प्‍यारी गुड़िया की तरह थी । नसीमा से मेरा परिचय निहाल ने कराया था । उन दिनों बी.ए. का छात्र था । इंटर में दाखिल
वह बरगद  पेड़   गांव के बीच का  वह बरगद का पेड़  उदास है आज।  कभी ----- गांव के अच्छे -बुरे  बक्तों का इतिहास  बुनता रहा है वह पेड़।  जुम्मन और अलगु की  दोस्ती का गबाह  गिरिजा और गुरुद्वारों में  समन्यब्यता  का सूत्रधार  आज बिस्मित है  वह पेड़ ---------- शाम की गोधूलि बेला  में  नहीं जमता है वहां  कोई चौपाल  ईद और दिवाली पर  नहीं बांटती है  वहां मिठाइयां  ग्रीष्म की चांदनी रातों में  नहीं बिछती है वहां  अब------------- अगल -बगल  में  जुम्मन और अलग की चारपाइयां  आखिर कियों। …? वह बरगद का पेड़  नहीं समझ प् रहा है  कइयों बढ़ गयी है  यह दूरियां