Friday, 27 November 2020

सम्पादकीय भाजपा के लिए है अवसर,बदले बिहार की तकदीर और करे जनता के दिलों पर राज...

 सम्पादकीय




         विनोद आनंद


क्या इस बार भाजपा का बड़बोलापन,और जुमलेबाजी महंगा पड़ने बाला है... या अपने बेहतरीन प्रदर्शन से राज्य की जनता के दिलों पर राज्य करने का मौका..?


यह सबाल बिहार के राजनीतिक गलियारों में उठने लगा है। चुनाव के समय राजद ने बेरोजगारी का मुद्दा उठाकर जनता से वादा 

किया था कि कैबिनेट की प्रथम बैठक में ही बिहार के 10 लाख युवाओं को रोजगार देने के लिए पहल शुरू कर देंगे। राजद के इस वादा पर जदयू ने सबाल उठाते हुए कहा था कि तनखाह देने के लिए पैसे कहाँ से लाओगे ? नीतीश जी ने तो यहां तक कह दिया था कि क्या जेल से पैसा आएगा।


इस सबाल के जवाब में तेजस्वी  ने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा था कि विधायक मंत्री का पैसा रोक देंगे लेकिन युवाओं को रोजगार देंगे।


परंतु जदयू ने इस तरह के किसी वादे से बचते रहे । लेकिन भाजपा ने राजद से दो कदम आगे बढ़कर  वादा किया कि हम बिहार में 19 लाख लोगों को रोजगार देंगे।


           इसका असर भी हुआ।इस वादा के बाद बिहार में भाजपा के  वोटों का  ग्राफ  बढ़ा,भाजपा एनडीए में जदयू को पछाड़ते हुए सबसे बड़ी पार्टी बनी।नीतीश जी भाजपा के कृपा से मुख्यमंत्री  बने। अब नीतीश जी के लिए यह 19 लाख लोगों का  रोजगार गले की फांस बनती जा रही है।


 इधर कैबिनेट की प्रथम बैठक के बाद तेजस्वी ने एलान कर दिया है कि अगर एनडीए अपने वादे के अनुसार एक महीना के अंदर 19 लाख युवाओं को नौकरी नही दिया तो हम युवाओं और हमारे 1.5 करोड़ मतदाताओं के साथ  सड़क पर उतरेंगे।


     राजद को इस मुद्दा के साथ बिहार में एक बड़ा आंदोलन का  मौका मिले उस से पहले सरकार को रोजगार का रोडमैप बनाकर जनता के सामने रख देना चाहिए।


क्योंकि रोजगार ऐसा मुद्दा है जिस पर युवाओं को संगठित करने में कोई ख़ास दिक्कत नही होगी।इस मुद्दा को लेकर उतरने से अपार जनसमर्थन भी मिलेगा और आंदोलन भी तेज होगा।वैसे बिहार की भूमि आंदोलन और क्रांति की भूमि रही,महात्मा गांधी से लेकर जयप्रकाश की सम्पूर्ण क्रांति ने देश की दशा और दिशा बदल दी थी,इस लिए इस धमकी को हल्के में सरकार को नही लेनी चाहिए!


 अगर हम पिछली बात करें तो वैसे बिहार में नौकरी के मामले में सरकार हमेशा उदासीन रही।पिछले चार साल में बिहार सरकार के पास स्वीकृत पद पर अमूमन 4.5 लाख नौकरी अभी भी रिक्त है लेकिन सरकार उसे भर पाने में असमर्थ रही।इतने बड़े कोरोना काल में भी सरकारी अस्पतालों में स्वस्घ्य कर्मी की कमी रही जिसे सरकार वहाल करने में असमर्थ रही।


     नीतीश सरकार ने शिक्षा विभाग में भी सरकार की सारी प्रक्रिया के अनुसार शिक्षकों को बहाल किया लेकिन उसे समान काम समान बेतन नही दिया।जिसके कारण शिक्षक नाराज चल रहे है।


कमोवेश यही हाल हर विभाग में है जहां  डेलीवेजेज और अनुबंध पर लोगों को काम पर रखकर  काम चलाया जा रहा है।


      लेकिन सरकार ने विधायकों और मंत्रियों की सुविधाएं बढ़ायी,मानव श्रृंखला और हरित क्रांति के नाम पर करोड़ों खर्च किये, लेकिन रोजगार और राज्य में कल कारखाना लगाने के नाम पर सरकार उदासीन रही।


इसीलिए इस बार बिहार सरकार के पास अवसर है ।भाजपा को अपना पोरफोर्मेन्स दिखाने का मौका भी है। केंद्र और राज्य में भाजपा की सरकार कहे जाने वाली स्थिति भी है।ऐसे में बिहार की तकदीर बदलने, युवाओं को रोजगार देने के दिशा में सरकार कारगर कदम उठा सकती है।


अभी सभी विभागों के रिक्त हुए पदों पर बहाल करने की प्रक्रिया सरकाऱ शुरू करे। राज्य में उद्योग लगाने के लिए कानूनी प्रावधानों को लचीला बनाये, अफसरशाही पर  अंकुश लगाए, नीतीश जी को बोल्ड प्रशासक बनने की भी जरूरत है। बिहार की तस्बीर तभी बदल सकती है।


अभी बिहार को विशेष राज्य की दर्जा की दरकार है, नीतीश जी जब राजद के साथ थे तो इस मुद्दा को उठाते रहे लेकिन जब भाजपा के साथ आ गए तो इस मांग पर उनका धार ढीला हो गया।इस बार  बाढ़, बीमारीं, बेरिजगरी और शिक्षा के लिए सुविधा विहीन बिहार को विशेष राज्य की दर्जा  जरूरी है सरकार इस पर भी गंभीर बने।

  ुवा कवि जालाराम की कविताए वो रातें..... वो रातें अब कहाँ गई, जब पल भर में सो जाते थे वो सपने अब कहाँ गए, जब पल भर में रो जाते थे यादों का ...